सम्मान देने का भाव बच्चों में शुरू से डालना चाहिए ! इसे ही अंग्रेजी में ” प्रोटोकॉल ” कहते हैं ! इसकी क्या मर्यादा है ! आज अक्सर देखने को मिलता है , पिताजी खड़े रहते हैं और बेटा बैठ जाता है ! आप स्वयं सोचिये, ऐसा भी कहीं होता है कि पुलिस का एक बड़ा अधिकारी खडा रहे और छोटा अधिकारी बैठ जाए ! ऐसा तो होता नहीं ! ऐसा कोर्ट में भी नहीं होता ! कार्यालयों में भी ऐसा नहीं होता ! बड़े बड़े संगठनों में भी ऐसा नहीं होता ! बड़ा जब तक खडा रहता है , तब तक छोटा भी खड़ा रहता है ! कोई बड़ा यदि बैठा है तो छोटा पूँछकर बैठता है !
आज सम्मान देने का भाव बहुत ही कम हो गया है ! प्रोटोकॉल लोग समझ ही नहीं रहे हैं ! चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि यदि किसी को परमात्मा का भक्त बनना है तो आदर पाने की इच्छा छोड़ दीजिये और सबको आदर देने की इच्छा से जुड़ जाइये ! हमेँ दूसरों को सम्मान देना चाहिए लेकिन हम तो अपना सम्मान चाहते हैं कि सब लोग हमारी जय– जयकार करें ! मान देने की परंपरा, मर्यादा निभाने की परंपरा , बच्चों को शुरू से ही सिखानी चाहिए ! जब पिताजी घर आयें तो बच्चे को खड़े हो जाना चाहिए और उनको प्रणाम करना चाहिए ! यह सब बच्चों को सिखाना होगा !
बच्चों को बताना होगा कि पिता बड़े हैं ! उनका मान, सम्मान करना चाहिए ! इससे समाज जुड़ेगा ! मानवता का विकास होगा ! सार्थकता बढ़ेगी ! भगवान् श्री राम जब उठते हैं तो माता– पिता को , ब्राह्मणों को, जितने भी बड़े लोग होते हैं, सबको प्रणाम करते हैं ! प्रणाम बहुत बड़ी साधना है ! प्रणाम समाज को जोड़ने वाला द्रव है ! समाज में सम्मान ही आदमी को चाहिए ! हमारा सनातन धर्म हमें सिखाता है कि लोगों को प्यार दो, सम्मान दो तो समाज के लोगों को जोड़ने में बहुत मदद मिलेगी !
आज तो यह देखने को भी मिलता है कि परिवारों में बच्चे बड़ों को आदर नहीं देना चाहते ! वह यह चाहते हैं कि बड़े लोग ही उनका आदर करें और उनका हाल– चाल पूंछे ! बड़ों के आने पर उठना तो छोड़िये , बच्चे चाहते हैं कि बड़े ही उठकर चले जाएं ! प्यार पाना तो चाहते हैं लेकिन देना नहीं चाहते ! यह बहुत बड़ी बीमारी फैल गई है जिसका निराकरण होना बहुत जरूरी है ! उन्हें यह नहीं पता है कि जो तुम बो रहे हो , आगे चलकर वही काटोगे ! जो हम दूसरों को देंगे , वही गाजे– बाजे के साथ वापस आयेगा ! इसलिए हमें हमेशा दूसरों को सम्मान देना चाहिए ! दूसरों की बिना किसी स्वार्थ के सहायता भी करते ही रहना चाहिए !
———- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे !