” बहुत बड़ी चूक “

एक बूढ़ा कारपेंटर अपने काम के लिए  बहुत मशाहूर् था  ! उसके बनाये लकड़ी के घर दूर– दूर तक प्रसिद्ध थे  ! लेकिन अब बूढ़ा होने के कारण उसने सोचा कि बाकी की जिन्दगी आराम से गुजारी जाए  ! वह अगले दिन सवेरे– सवेरे अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला  , ठेकेदार साहब, मैंने बरसों से आपकी सेवा की है, पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा– पाठ में बिताना चाहता हूँ  ! कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति देने का कष्ट करें  !

ठेकेदार उसको बहुत मानता था  , इसलिए उसे यह सुनकर थोड़ा दुख हुआ पर वह उसको निराश नहीं करना चाहता था  ! ठेकेदार ने कहा  , आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं  ! आपकी कमी यहाँ कोई पूरी नहीं कर पायेगा  , इसलिए मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक आखिरी काम करते जाइये  ! जी, क्या करना है  ? कारपेंटर ने पूँछा  ! मैं चाहता हूँ कि आप जाते– जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये  ! ठेकेदार घर बनाने के लिए जरूरी पैसे देते हुए बोला  !

कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया  ! उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया  , लेकिन यह जानकर कि यह उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और यह नहीं करना पड़ेगा तो वह थोड़ा ढीला पड़ गया  ! पहले जहाँ वह बड़ी सावधानी से लकड़ियाँ चुनता था और काटता था  ! अब बस काम चलाऊ तरीके से ये सब करने लगा  ! एक हफ़्ते में घर तैयार हो गया और वह ठेकेदार के पास पहुँचा  , ठेकेदार साहब  , मैंने घर तैयार कर दिया है  ! अब तो मैं काम छोड़कर जा सकता हूँ  ?

ठेकेदार ने उत्तर दिया  , हाँ  , आप बिलकुल जा सकते हैं लेकिन अब आपको अपने पुराने छोटे से घर में जाने की जरूरत नहीं है  क्यों कि इस बार जो घर आपने बनाया है  , वो आपकी बरसों की मेहनत का ईनाम है  ! जाइये, अपने परिवार के साथ उसमें खुशहाली से रहिये  ! कारपेंटर यह सुनकर भौचक्का रह गया  ! वह मन ही मन सोचने लगा  , मैंने दूसरों के लिए एक से बढ़कर एक घर बनाये और अपने घर को ही•••••••  काश  , मैंने यह घर भी बाकी घरों की तरह ही बनाया होता  !  कहानी से यही सीख मिलती है कि  इसीलिए कभी भी अपने और दूसरे के काम में अन्तर नहीं करना चाहिए  !  कर सबका भला तो हो अपना भला  !  सबके साथ समान रूप से एक जैसा व्यवहार करने से ही हमारा भी मार्ग प्रशस्त होगा  !

 

————  राम कुमार दीक्षित  , पत्रकार  , पुणे  !