” संस्कारयुक्त बेटी, संस्कार शून्य पुत्रों से उत्तम है “

एक बार सन्त रामचंद्र के पास एक भक्त आया और बोला, ‘ महाराज,  मेरे परिवार में पर्याप्त सुख है  ! अपार धन संपत्ति है  ! संतान भी है  , लेकिन केवल दो पुत्रियाँ हैं  ! कोई पुत्र नहीं है  ! सन्त जी ने कहा, तुम पुत्र प्राप्ति के लिए इतने लालायित क्यों हो  ? इस पर वह व्यक्ति बोला, महाराज, मैंने सुना है कि पुत्र प्राप्ति के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है  !

सन्त बोले, क्या तुमने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है जिसके केवल पुत्रियाँ हों और उसे मोक्ष की प्राप्ति न हुई हो  ! भक्त बोला, महाराज, मैंने ऐसे किसी व्यक्ति को देखा तो नहीं, परन्तु इस तरह की बातें सुनी अवश्य हैं  ! इस पर सन्त महाराज बोले, जिस तथ्य को तुमने स्वयं देखा नहीं, उसे मानते क्यों हो  ?  जीवन में असंगत  , तर्कहीन एवं सुनीसुनाई बातों पर विश्वास करना  , अपने जीवन को व्यर्थ करने जैसा है  ! एक संस्कारयुक्त  बेटी, संस्कार शून्य पुत्रों से कहीं उत्तम है  ! तुम दोनो पुत्रियों को ही पुत्र तुल्य मानकर उनको अपना उत्तराधिकारी मानो  ! उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाओ  ! उनका भली– भाँति पालन– पोषण करो तथा भेदभाव की संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर उनके एवं अपने उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए जीवन को आनंदपूर्वक  जियो  !  सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्ति के कर्म ही उसे मोक्ष दिलाते हैं  ! जिसने अपना जीवन परमात्मा की भक्ति में लगाया है  और जिसने पवित्र आचरण से जीवन जिया है  ! परोपकार और सेवा को जिसने  जीवन जीने का सूत्र बनाया है, उसे परमात्मा की कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है  !

 

—————- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे  !