एक बार लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अपने पिता से पूंछा , ” पिताजी दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है? ” पिता बच्चे से ऐसा गम्भीर सवाल सुनकर हैरान रह गये ! फिर बोले , बेटा, एक मनुष्य की कीमत आँकना बहुत मुश्किल है ! मनुष्य तो अनमोल है !
बालक ने पूँछा , ” क्या सभी उतने ही कीमती और महत्वपूर्ण हैं ? ” पिता जी ने हाँ तो कह दिया लेकिन बालक के कुछ पल्ले नहीं पड़ा ! उसने फिर पूँछा , तो फिर इस दुनिया में कोई गरीब तो कोई अमीर क्यों है ? किसी की कम इज्जत तो किसी की ज्यादा क्यों होती है ? पिता जी कुछ देर शान्त रहे ! फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का राड मँगवाया ! रॉड लेकर बालक से पूँछा, ” इसकी क्या कीमत होगी ? बालक ने उत्तर दिया, लगभग 300 रुपये ! पिता बोले , ” अगर मैं इसकी छोटी छोटी कील बना दूँ तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ? बालक बोला, तब तो यह और महंगा बिकेगा ! लगभग 1000 रुपये का ! पिता जी ने पूँछा, अगर मैं इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो ? बालक कुछ देर सोचता रहा ! फिर बोला , तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी ! पिता जी, उसे समझाते हुए बोले , ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत है ! इसमें नहीं है कि अभी वह क्या है बल्कि इसमें है कि वह अपने आपको क्या बना सकता है ! बालक अपने पिता की बात समझ गया ! समाज में भी यही देखने को मिलता है कि जो लोग रात– दिन मेहनत करके, परमात्मा की कृपा से एक ऊंचा लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं तो स्वभावतः उनकी प्रतिष्ठा और उनकी ख्याति अपने आप बढ़ जाती है ! मनुष्य के उसके संस्कार, उसका पवित्र आचरण और उसके गुण ही उसे अनमोल बना देते हैं !