” रामलला का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम सबसे अनूठा रहा “

ऐसा लगा, जैसे संपूर्ण भारतवर्ष के सांस्कृतिक पुनरुत्थान का वैभव अयोध्या में ही उतर आया है  ! राम आ गये हैं ! उत्तर कांड में कहा गया है कि—- अतिम रूप प्रगटे तेहि काला  ! जथा जोग मिले सबहिं कृपाला  !  आज हर घर में परमात्मा के आगमन का जो सुन्दर नवविहान्  हम देख रहे हैं  , वह अद्भुत, अनुपमेय है  ! हम भाग्यशाली हैं कि हमने भगवान् को स्वगृह में प्रवेश करते देखा  !

भगवान् राम का बाल रूप बेहद मनोहारी है  ! बाल रूप में दशरथ जी के आँगन में खेलते हैं  ! अयोध्या में स्थापित प्रतिमा बाल रूप और उनके युवा रूप के बीच के माधुर्य को प्रकट करती है  ! भक्तों, पर्यटकों  विद्वान जिज्ञासुओं के लिए अयोध्या धाम अब दर्शन और शोध का विषय बना रहेगा  , क्यों कि, ” हरि अनंत ” हैं तो हरि कथा भी अनन्ता है  ! पौराणिक— ऐतिहासिक पुनरुद्धार के अब तक के जितने भी कार्यक्रम हुए हैं  , रामलला के मन्दिर का प्राण– प्रतिष्ठा कार्यक्रम उन सबसे अनूठा  , सबसे भव्य रहा  ! मानो जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि  ! उत्तर दिसि बह सरजू पावनि  ! की जो कल्पना की गई थी, वह साकार हो उठी है  !

गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है  , जाने बिनु न होई परतीती  ! बिनु  परतीति  होई नहीं प्रीती  ! आज प्रतीति भी हो गई है और प्रीति तो ऐसी जगी है कि मन अयोध्या जी से निकलने को तैयार ही नहीं  ! रामलला का मन्दिर हमारे सांस्कृतिक मूल्य– बोध का एक ऐसा स्थल बन रहा है  , जहाँ हम अपने पुरातन इतिहास को सुरक्षित रखते हुए उसे विश्व— गौरव की पराकाष्ठा पर ले जायेंगे  !

 

———-  राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे  !