व्यक्ति दो तरह से प्रवृत्त होता है, सार्थक और निरर्थक ! यदि व्यक्ति अपनी सारी प्रवृत्तियों का सूक्ष्म निरीक्षण करे तो उसे यह समझ में आ जायेगा कि उसकी प्रवृत्तियों में निर्र्थक प्रवृत्तियों का जमघट भी कम नहीं है ! अनावश्यक बोलना , अनावश्यक व्यर्थ काम करना , व्यर्थ समय खोना, अनावश्यक विषयों के बारे में सोचते रहना, केवल मनोरंजन के नाम पर अनेक अनावश्यक अश्लील हंसी मज़ाक करना, हानि कारक और व्यर्थ की प्रथाओं परिपाटियों का पालन करना, व्याधि ग्रस्त हो जाने जैसे दुर्व्यसनों का सेवन करना, ताश– पत्ती और अंकों के खेल खेलकर धन नष्ट करना आदि आदि !
उपरोक्त के अलावा अनेक ऐसी प्रवृत्तियाँ हैं जो न केवल निरर्थक हैं बल्कि वे अनेक आपदाओं को जन्म देती हैं ! ऐसी प्रवृतियाँ लोक जीवन में घर किये हुए लाखों, करोड़ों व्यक्ति आँख मूँदकर ऐसे अनावश्यक कार्यों में अपना तन, मन और धन नष्ट कर रहे हैं ! अनेक संघर्ष और तनाव जो मानव जीवन में व्याप्त हैं ! उनमें से अधिकांश तो ऐसी निरर्थक बातों के कारण ही हैं ! व्यक्ति अपने तनाव और चिन्ता से मुक्त होने के अनेक उपाय करता है ! मनुष्य को चाहिए कि अन्य कोई उपाय करने के पहले उसे अपने जीवन से उन निरर्थक कार्यों को दूर कर देना चाहिए जो उसके जीवन में व्यर्थ ही डेरा डाले हुए हैं ! इससे उसको अपने जीवन में बहुत बड़ा सार्थक परिवर्तन दिखाई पड़ने लगेगा !
———- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे !