रावण की लंका क्यों जली ? इसकी लोग खूब चर्चा करते हैं ! जो भगवान् राम के भक्त हैं, उन्हें इस चर्चा में खूब आनंद भी आता है ! श्री राम जी के भक्तों को पता भी है कि लंका रावण के अहंकार ने और उसके दुर्गुणों ने जलाई ! हम लोग भी दुर्गुणों के वशीभूत होकर अपनी देह यानी शरीर और अपना दाम्पत्य जीवन तथा अपना परिवार भी जलाने का कुत्सित प्रयास करते रहते हैं !
जब हनुमान जी से श्री राम ने पूँछा कि तुमने रावण की लंका कैसे जलाई तो हनुमान जी ने उत्तर दिया , प्रभु मैंने रावण की लंका नहीं जलाई ! स्वयं रावण ने ही अपनी लंका जलाई ! रावण के छः दुर्गुणों के कारण लंका जली और प्रभु मुख्य था रावण का अहंकार ! प्रभु , मेरी तो पूंछ में आग लगी थी, इसलिए मुझे तो उछल– कूद करनी ही थी ! प्रभु, मैंने अपनी सुरक्षा की ! लंका तो स्वतः जल गई ! प्रभु, विभीषण का घर मैंने जरूर बचाया क्यों कि विभीषण अहंकार से शून्य थे और वह परमात्मा के प्रति समर्पित थे !
अब हमें भी यह सोचना है कि ये जो छः दुर्गुण हमारे भीतर हैं —– काम, क्रोध , लोभ, मद, मोह और मत्सर ! यही छः दुर्गुण हमारे शरीर और हमारे परिवार को भी जलाते हैं , जिसको कलह, अशांति, बीमारियां और परेशानियाँ कहते हैं और हमारा अहंकार हमें किसी के सामने झुकने नहीं देता ! अहंकार ही समस्यायों का हल नहीं निकालने देता ! अहंकार ने ही तमाम परिवारों में वैमनस्य पैदा कर रखा है ! हमें अपनी कुशलता , अपने परिवार की कुशलता और समाज की कुशलता के लिए अपने आपको अहंकार से बचाना होगा ! एक प्रेम पूर्ण वातावरण सबकी कुशलता के लिए तैयार करना होगा !
———- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार, पुणे !