एक बार एक नगर में गौतम बुद्ध प्रवचन देने के बाद लोगों से मिल रहे थे ! उनकी समस्यायें सुन रहे थे और नेक सलाह दे रहे थे तभी प्रवचन के समय बुद्ध के शिष्य आनंद ने उनसे पूँछा, भंते ! आपके सामने हज़ारों लोग बैठे हैं ! बताइये कि इनमें सबसे संतुष्ट कौन है ?
बुद्ध ने एक विहंगम दृष्टि भीड़ पर डालते हुए कहा , वह देखो, सबसे पीछे एक दुबला– पतला फटे वस्त्र पहने जो आदमी बैठा है , वह सर्वाधिक संतुष्ट है ! आनंद सहमत नहीं हुए ! वह बोले , यह कैसे संभव है ? वह तो बहुत दयनीय जान पड़ता है ! बुद्ध ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए बारी– बारी से सामने बैठे लोगों से पूँछा, तुम्हें क्या चाहिए ?
उन लोगों में से किसी ने संतान मांगी , तो किसी ने मकान , कोई रोग से मुक्त होना चाहता था , तो कोई अपने शत्रु पर विजय पाना चाहता था ! ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं था , जो जीवन से संतुष्ट हो ! अंत में बुद्ध ने उस फटेहाल आदमी को बुलाकर पूँछा, तुम्हें क्या चाहिए ? उसने हाथ जोड़कर जवाब दिया , मुझे कुछ नहीं चाहिए !
उसने आगे कहा कि परमात्मा को मुझे कुछ देना ही है तो बस इतना कर दे कि मेरे अन्दर कभी कोई चाह पैदा न हो ! मैं स्वयं को संतुष्ट मानता हूँ ! उसकी बात सुनकर अपने शिष्य आनंद से बुद्ध ने कहा , आनंद, जहाँ चाह है, वहाँ संतुष्टि नहीं हो सकती ! आनंद ने बुद्ध की इस शिक्षा को सदा के लिए गाँठ बाँध लिया ! परमात्मा तो हमारे अंतर्तम् में बैठा हुआ है , उसको खूब पता है कि मानव को क्या चाहिए ! परमात्मा बिना मांगे भी हमें वही सब कुछ देगा, जिसकी हमें ज़रूरत है , शर्त यही है कि परमात्मा पर हमें पूर्ण विश्वास होना चाहिए !
——- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !