दशरथ जी ने कहा, श्रवण कुमार के माता– पिता ने मुझे शाप दिया था कि तुम्हारी मौत भी पुत्र वियोग में होगी ! कौशल्या , कर्मफल भोगे बिना कोई चारा नहीं !
अपने पुत्र श्री राम को राज्याभिषेक की जगह चौदह वर्ष के वनवास की आज्ञा देने की विवशता से दुःखी दशरथ जी अत्यंत पीड़ा में थे ! हर क्षण उनके मुख से ” राम– राम ” निकल रहा था ! कौशल्या जी के पास बैठे– बैठे वह बोले , मुझे राम के दर्शन कराओ ! उन्होंने कहा, जिसका अगले दिन राज्याभिषेक हो, उसे वनवास की आज्ञा मिले फिर भी उसके चेहरे पर आक्रोश नहीं , ऐसा पुत्र राम के अलावा कौन हो सकता है ?
कुछ क्षण रुककर उन्होंने कहा, भरत का राज्याभिषेक करने के बाद उससे कहना कि रघुवंश की संस्कृति भ्रातृ– भाव न टूटने पाए ! राम रघुवंश के मणि हैं ! वनवास पूरा करने के बाद उस मणि को राज सिंहासन पर आसीन करने में ही हमारे कुल का गौरव है !
आगे उन्होंने कौशल्या से कहा, क्या सामने की दीवार पर तुम्हें कुछ दिखाई देता है ? कौशल्या, सुमित्रा और सुमंत ने कहा, हमें तो केवल दीवार दिखाई दे रही है ! दशरथ जी ने कहा, श्रवण कुमार के गरीब माता– पिता ने मुझे शाप दिया था कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग का दुःख भोग रहे हैं ! उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु पुत्र वियोग में होगी ! चार पुत्रों में से कोई भी तुम्हारे मुँह में पानी डालने वाला न होगा ! कौशल्या , कर्म का फल भोगे बिना कोई उपाय नहीं ! यह कहते– कहते दशरथ जी की आँखों से आँसू बहने लगे !
——— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे !