” दौर—–ए—–गज़ल “

अब  धूप  भूल  जाइए  , सूरज  यहाँ  नहीं

ऐसी  जमीं  मिली  है   जहाँ  आसमां  नहीं

ये  राज़  अब  खुला  तेरी  नाराज़गी  के  बाद

तू  मेहरबाँ  नहीं,  तो  कोई  मेहरबाँ   नहीं  .

मीरा,  कबीर, सूरदास —- ओ  नानक  के प्यार  को

जो  देश  भूल  जाए   ,  वो  हिंदोस्ता   नहीं  .

दिल  ने तुम्हारी  याद  में,  सबको  भुला  दिया,

इस  ताक  में  चराग़  है  लेकिन  धुआँ  नहीं  .

जा  उसका  नाम  लिख  दे  गुलाबों  की  शाख  पर,

फूलों  के  आस  पास  अगर  तितलियाँ   नहीं  .

( संकलित  )

 

———  राम  कुमार  दीक्षित, पत्रकार  , पुणे  !