“ग़ज़ल “

जो  तुम्हारी  नज़र  से  उतर  जायेंगे  ,

गर  वो  भावुक  हुए  तब  तो  मर  जायेंगे  !

बे— वजह  यूँ  न  खिड़की  से  झांका  करो  ,

राह  चलते  मुसाफिर  ठहर   जायेंगे  !

कुछ  प्रवासी  परिंदे  भी  हैं  झील  पर  ,

ऋतु  बदलते  ही  जो  अपने  घर  जायेंगे  !

इक  पड़ाव  के  आगे  हैं  रास्ते  कई

कुछ  इधर  जायेंगे  कुछ  उधर  जायेंगे  !

जिनको खैरात  खाने  की  आदत  लगी  ,

उनके मेहनत  के  गुण  सब  चले  जायेंगे  !

बेहतरी  के  मसौदे  कई  हैं  मगर  ,

सब  के  सब  फ़ाईलों  में  ही  मर  जायेंगे   !

( संकलित  )

 

———–  राम कुमार दीक्षित, पत्रकार  ,  पुणे  !