पपु पत्नी , फिर इनका माता– पिता बनना और फिर इनके जीवन में संतान का प्रवेश होना….. सभी परिवारों में यह स्वाभाविक चरण है लेकिन यह जितना स्वाभाविक है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी है ! परिवार में संतान के प्रवेश होते ही यह चुनौतीपूर्ण हो जाता है ! पति– पत्नी में यदि तनावपूर्ण संबंध हैं तो उनका माता– पिता बनना उन पर भारी हो जाता है क्यों कि माता– पिता का व्यवहार बच्चों में ट्रांसफ़र हो जाता है ! माता– पिता के आपसी व्यवहार को बच्चे बिना कुछ बताये अपने आप सीख जाते हैं !
तुलसीदास जी ने राम जी के परिवार की चर्चा करते समय जब संतानों की बारी आई, तो एक ही पंक्ति में पूरा दर्शन लिख दिया ! ” दुई सुत सुंदर सीता जाए, लव कुश बेद पुरानन्ह गाये ! सीता जी के लव और कुश नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए, जिनका वेद– पुराणों ने वर्णन किया है ! पुराणों में श्री राम की संतानों की चर्चा आई है , जिसका मतलब यह है कि उन्हें श्रेष्ठता का प्रमाण– पत्र प्राप्त हो गया !
ये वो ग्रंथ हैं, जिसमें प्रशंसा का स्थान योग्यता की चरम सीमा पर ही मिलता है ! अब हमें यह सीखना है कि माता– पिता का चित्त यदि प्रेम– श्रद्धा और विश्वास से भरा हुआ है ! तब यही माता– पिता का प्रेम पूर्ण व्यवहार संतान में योग्यता बनकर उभरेगा !
समाज में तमाम ऐसे परिवार हैं जिनमें माता — पिता जीवन में छोटी– छोटी बातों पर लड़ जाते हैं और घर में एक तनावपूर्ण माहौल बना ही रहता है जिसके कारण उनके बच्चे भी तनवग्रस्त हो जाते हैं ! कई परिवारों में बच्चे इसीलिए बिगड़ भी जाते हैं क्यों कि वो देखते हैं कि उनके माता– पिता हमेशा लड़ते ही रहते हैं तो उनकी सुनने वाला, समझने वाला कोई नहीं है ! उदाहरण यह भी है कि जिस परिवार में माता– पिता में आपसी प्रेम पूर्ण व्यवहार रहता है , उनके बच्चे कैरियर भी ठीक बना लेते हैं !
समस्याएं हर परिवार में होती हैं , बस उनको मिल बैठकर शांति के साथ उसका हल निकालने का प्रयास करना चाहिए ! परिवारों में अगर शांति है तो समाज में भी शांति के लक्षण दिखाई देंगे ! समाज में शान्ति होगी तो लोग खुशहाल होंगे ! इसलिए माता– पिता का यह दायित्व हो जाता है कि अपने बच्चों के लिए, परिवार के लिए आपसी व्यवहार सौहार्द्र पूर्ण हमेशा बनाये रखें जिससे बच्चों का भविष्य भी उज्ज्वल हो सके !
———- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !