हम लोग कितना बोलते हैं ! बोलना चाहिए लेकिन हमने आदत बना ली है, बोलते ही रहते हैं ! मौन का महत्व समझ में आना जरूरी है ! इसका प्रयोग भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में किया था ! वह जानते थे कि मुझे अर्जुन को समझाने के लिए सार शब्दों का प्रयोग करना होगा और उन्होंने ऐसा ही किया और इसी को संसार गीता के नाम से जानता है ! गीता में 18 अध्याय हैं !
पहले अध्याय में 47 श्लोक हैं 27 वें श्लोक तक तो संजय ने दृश्य ही बताया है ! फिर 28 से 46 तक अर्जुन धाराप्रवाह बोले हैं और वह साबित करने में लगे थे कि मैं युद्ध क्यों कर रहा हूँ ! कृष्ण मौन होकर ध्यान से अर्जुन को सुन रहे थे ! दृश्य देखकर लगता है कि अर्जुन से बड़ा विद्वान नहीं है लेकिन उस समय कृष्ण मौन साधे हुए थे ! फिर दूसरे अध्याय के आरम्भ में कृष्ण बहुत संक्षेप में बोले और इसी अध्याय के 11 वें श्लोक से फिर उन्होंने बोलना शुरू किया जो आज भी सारी दुनिया सुन रही है ! यह मौन का प्रभाव है ! हम जितना ज्यादा बोलेंगे, शब्द उतनी ही ऊर्जा चूस लेंगे और जितना मौन रहेंगे , उतनी ऊर्जा हमारी संग्रहीत होती जायेगी और यह ऊर्जा जीवन के हर क्षेत्र में काम आयेगी !
इससे हमें यही सीख मिलती है कि जहाँ आवश्यक है, वहीं बोलें और बोलने में सार्थक शब्दों का ही प्रयोग हो ! आज के युग में बिना बोले भी काम नहीं चलेगा लेकिन ज्यादा बोलने से , बहुत सी बातें ऐसी निकल जाती हैं जिसकी जरूरत नहीं होती और बाद में वही परेशानी का कारण बनती हैं ! समय और परिस्थिति के अनुसार नाप तौल कर बोलना उत्तम होता है और हमेशा इस बात का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए कि हमें क्या बोलना है !
————- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे !