एक बहेलिया पक्षियों को जाल में फंसाकर उन्हें बेचकर अपने परिवार का भरण –पोषण करता था ! एक बार श्रावक मुनि विचरण करते हुए उस क्षेत्र में पहुंचे ! बहेलिया मुनि जी के दर्शन के लिए पहुंचा ! उसने उनके प्रवचन से प्रभावित होकर मुनि जी से दीक्षा देने का अनुरोध किया ! मुनि ने कहा, तुम्हें अहिंसा– पालन का संकल्प लेना होगा ! उसने कहा , महाराज , मेरी आजीविका का साधन ही पक्षी हैं ! मैं अहिंसा का व्रत कैसे ले सकता हूँ ? मुनि ने कहा, ‘ कम से कम किसी एक पक्षी के प्रति अहिंसा बरतने का संकल्प ले लो ! उसने कहा , मैं कौवे को न पकड़ूँगा और न उसकी हत्त्या करूँगा !
मुनि जी ने उसे आंशिक अहिंसा का व्रत दिला दिया ! घर पहुँचते ही उसके मस्तिष्क में आया कि जो प्राण कौवे में हैं ! वही प्राण अन्य पक्षियों में भी हैं ! यदि मैं कौवे की हत्त्या को हिंसा और पाप मान चुका हूँ तो अन्य पक्षियों की हत्त्या में हिंसा कैसे नहीं होगी ? विचारों की इसी उधेड़बुन में, वह रातभर सो नहीं पाया ! सुबह वह श्रावक मुनि जी के पास पहुंचा तथा उनके सामने जाल फेंकते हुए बोला—– मुनिवर , मैं अब भविष्य में किसी भी प्राणी की हत्त्या नहीं करूँगा ! मैं पूर्ण अहिंसा का व्रत लेता हूँ ! पक्षियों की जगह शाक— भाजी बेचकर उससे परिवार का पालन– पोषण करूँगा ! श्रावक मुनि जी के सत्संग ने बहेलिये के जीवन को रूपांतरित कर दिया ! इससे हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें भी कभी किसी के भी प्रति मन, वचन और कर्म से हिंसा नहीं करनी चाहिए !
——- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे !