शास्त्रों में विवाह के प्रकार भी बताये गए हैं ! लेकिन आज के समय में दो तरह की शादियाँ आमने– सामने हैं! लव— मैरिज और अरेंज मैरिज ! अब लव मैरिज का प्रतिशत बढ़ गया है ! इसमें कोई बुराई भी नहीं है !
ये सारे इंतजाम दाम्पत्य जीवन आरंभ होने के पहले के हैं ! फिर धीरे– धीरे परीक्षा की घडी आती है ! जब पति– पत्नी के रूप में रहना पड़ता है, फिर वो चाहे अरेंज मैरिज हो या लव मैरिज ! एक अलग तरह का धैर्य काम करता है !
एक शब्द होता है— स्वावलंबन और एक होता है परावलंबन् ( डिपेंडेंसी ) ! पति– पत्नी के बीच अब गरिमापूर्ण परावलंबन् होना चाहिए ! एक— दूसरे के बिना ये रह नहीं सकते और रहना भी नहीं चाहिए ! सुख काटने के लिए भी साथी चाहिए !
पहले कहा जाता था कि दुख में भी कोई न कोई साथ चाहिए ! अब तो सुख में भी कोई साथ होना ही चाहिए, यदि सुख में कोई अच्छा साथ न हो तो वह सुख भी दुख में बदल ही जाता है ! इसलिए पति– पत्नी एक दूसरे पर अवलंबित रहें, पर समझ के साथ और तब इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा कि विवाह लव मैरिज है या अरेंज मैरिज ! दोनों की सार्थकता साथ में प्रेम पूर्ण रहने में है!
———— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार, पुणे !