” ग़ज़ल “

हर  किसी  का  मुक़द्दर  सिकंदर  नहीं  होता  ,

हर  कतरे  का  नसीब  समंदर  नहीं   होता   !

दिखने  को  दिखते  हैं  बहुत  मस्त   मौला  ,

लेकिन  हर  इक  मस्त  मौला  कलंदर  नहीं  होता  !

मकान  एक  से  एक  आला  मिल   जाते   हैं  ,

लेकिन  हर  इक  मकान  कभी  घर   नहीं  होता   !

मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे  हैं  इबादत  को  ,

नापाक  दिल  इबादत  का  असर  नहीं  होता   !

बन  जाता  है  कोई— कोई  पत्थर  हबीब  ,

बन  जाए  हबीब,  हर  इक  पत्थर  नहीं  होता   !

अज़ीब  शख्स  है  जो  पलकों  पे  बैठा   मेरी  ,

बाहर  भी  नहीं  जाता  ,  अन्दर  भी   नहीं   होता   !

( संकलित  )

 

———- राम  कुमार  दीक्षित  ,   पत्रकार  ,   पुणे   !