हर किसी का मुक़द्दर सिकंदर नहीं होता ,
हर कतरे का नसीब समंदर नहीं होता !
दिखने को दिखते हैं बहुत मस्त मौला ,
लेकिन हर इक मस्त मौला कलंदर नहीं होता !
मकान एक से एक आला मिल जाते हैं ,
लेकिन हर इक मकान कभी घर नहीं होता !
मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे हैं इबादत को ,
नापाक दिल इबादत का असर नहीं होता !
बन जाता है कोई— कोई पत्थर हबीब ,
बन जाए हबीब, हर इक पत्थर नहीं होता !
अज़ीब शख्स है जो पलकों पे बैठा मेरी ,
बाहर भी नहीं जाता , अन्दर भी नहीं होता !
( संकलित )
———- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !