करती हैं लहरें मधुर गान !
जगती के मन को खींच— खींच
निज छवि के रस से सींच– सींच ,
जल—- कन्यायें भोली अजान !
सागर के उर पर नाच— नाच ,
करती हैं लहरें मधुर गान !
प्रातः समीर से हो अधीर ,
छूकर पल– पल उल्लसित तीर ,
कुसुमावलि — सी पुलकित महान !
सागर के उर पर नाच— नाच ,
करती हैं लहरें मधुर गान !
तन पर शोभित नीला दूकुल ,
हैं छिपे हृदय में भाव— फूल,
आकर्षित करती हुई ध्यान !
सागर के उर पर नाच— नाच ,
करती हैं लहरें मधुर गान !
हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न ,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न ,
हैं एक सूत्र में बंधे प्राण !
सागर के उर पर नाच–नाच,
करती हैं लहरें मधुर गान !
——– प्रसिद्ध कवि गोपालशरण सिंह
( संकलित )
———– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !