मैं हूँ सुहागिन गोपाल की
बेला है फूलों के माल की
फूलों के माल की …..
धीरे उठाओ मेरी पालकी !
धीरे उठाओ मेरी पालकी
मैं हूँ बंसुरिया गोपाल की
बेला है गीतों के ताल की
गीतों के ताल की……..
धीरे उठाओ मेरी पालकी !
धीरे उठाओ मेरी पालकी
मैं हूँ सुरतिया गोपाल की
बेला है मनसिज के ज्वाल की
मनसिंज के ज्वाल की…..
धीरे उठाओ मेरी पालकी !
———– प्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल
( संकलित )
———– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !