” यकीन चाँद पे सूरज में ऐतबार भी रख “

यकीन  चाँद  पे  सूरज  में ऐतबार  भी  रख

मग़र  निगाह  में  थोड़ा  सा  इंतिजार  भी  रख   !

 

ख़ुदा  के  हाथ  में  मत  सौंप  सारे  कामों  को

बदलते  वक़्त  पे  कुछ  अपना  इख़्तियार  भी  रख   !

 

ये  ही  लहू  है  शहादत, ये  ही  लहू  पानी

खिजाँ  नसीब  सही  ज़ेहन  में  बहार  भी  रख  !

 

घरों  के  ताकों  में  गुल– दस्ते  यूँ  ही  नहीं  सजते

जहाँ  हैं  फूल  वहीं  आस— पास  खार  भी  रख   !

 

पहाड़  गूंजें  नदी  गाये  ये  ज़रूरी  है

सफ़र  कहीं  का  हो  दिल में किसी का प्यार भी रख  !!

———- निदा फ़ाजली

( संकलित  )

———– राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !