अब तड़के का कसि कै नहाबु
हैंय भूलि गयीं भगतिनि चाची !
लोटिया भर पानी डारय तौ
घर माँ घूमय नाची— नाची !!
ई जाड़े मा हारी मानेनि ,
पानी ते पंडित शिव किशोर !
तन पर थवारै पानी चुपरय ,
मुलु मंत्र पढ़त हय जोर–जोर !!
बप्पा हम आजु नहैंबे ना ,
लरिकउना माँगत माफी हय !
दुई कलसा पानी का करीबै ,
अब तौ चुल्लू भर काफी हय !!
बहुरिया सास का भय कईकै
बसि सी—सी सीसीयाय दिहिस !
आड़े मा धोती बदलि लिहिस ,
पानी धरती पै नाय दिहिस !!
——– प्रसिद्ध हास्य कवि रमई काका
——- ( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !