” आया दशहरा “

विजय  सत्य  की  हुई  हमेशा

हारी  सदा   बुराई   है  ,

आया  पर्व  दशहरा  ,  कहता

करना  सदा  भलाई  है   !

 

रावण  था  दम्भी   अभिमानी  ,

उसने छल  बल   दिखलाया  ,

बीस  भुजा  दस  सीस  कटाये  ,

अपना कुनबा  मरवाया   !

 

अपनी  ही  करनी  से  लंका  ,

सोने  की  जलवाई  है  !

 

मन  में  कोई  कहीं  बुराई  ,

रावण  जैसी  नहीं  पले  ,

और  अंधेरी  वाली  चादर  ,

उजियारे  को  नहीं  छले   !

 

जिसने  भी  अभिमान  किया  है  ,

उसने  मुँह  की  खायी  है  !

 

आज  सभी  की  यही  सोच  है  ,

मेल–जोल   खुशहाली  हो  ,

अंधकार   मिट  जाए   सारा  ,

घर  घर  में   दीवाली  हो  !

मिली  बड़ाई  सदा  उसी  को  ,

जिसने की  अच्छाई    है  !

(  संकलित  )

 

——-  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !