स्वामी शरणानंद ईश्वर में अपने अनन्त विश्वास के लिए प्रसिद्ध थे ! वह नेत्र हीन थे ! नियमित ईश्वर का भजन—पूजन करते थे ! साथ ही मन्दिर जाने का भी उनका अटल नियम था ! एक दिन एक श्रद्धालु ने उनसे प्रश्न किया, महाराज, आपकी ईश्वर में असीम आस्था प्रशंसनीय है ! आप भजन पूजन करते हैं ! यह भी संतोषप्रद है, किंतु आप नेत्र हीन होकर भी मन्दिर जाते हैं , यह अटपटा लगता है !
आप तो मूर्ति को भी नहीं देख सकते , फिर इससे क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? स्वामी शरणानंद ने बड़े विनम्र स्वर में उत्तर दिया , ” मैं देख नहीं सकता तो क्या हुआ ? परमात्मा तो सब देखते हैं ! ” भगवान् की आँखों से कोई बच नहीं सकता ! मुझे तो वह यहाँ आता देख ही रहे हैं ! यही मेरे लिए प्रसन्नता की बात है ! इसी हृदय की प्रसन्नता के लिए, मैं मन्दिर आता हूँ ! श्रद्धालु उनकी परमात्मा के प्रति असीम आस्था देखकर नतमस्तक हो गया !
——— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे !