यूनान के एक नगर में एक गरीब बालक लकड़ी का गट्ठा लेकर बाजार में बेचने गया ! एक भले व्यक्ति ने गट्ठर को कलात्मक ढंग से बंधा देखा तो उसने बच्चे से पूँछा , ” यह गट्ठर किसने बांधा है ” ? बालक बोला, मेरे पिता लकड़ी काटते हैं और मैं उन्हें बांधकर लाता हूँ ! उस आदमी ने कहा, इसे खोलकर दोबारा इसी तरह बांध सकते हो ? बालक ने गट्ठर खोलकर पुनः बांध दिया ! वह आदमी बच्चे के श्रम से खुश होकर बोला, बेटा ! मुझे गट्ठर नहीं खरीदना ! मैं तुम्हें पढ़ा लिखाकर काबिल बनाना चाहता हूँ ! क्या तुम मेरे साथ रह सकते हो ? बच्चे ने जवाब दिया , मैं चलने को राज़ी हूँ ! आप कहें तो घर से पिता की आज्ञा ले आऊँ !
पिता ने बालक को खुशी– खुशी भेज दिया ! बालक कुशाग्र बुद्धि का निकला ! गणित में गहरी रुचि के कारण आगे चलकर वही बालक यूनान के महान गणितज्ञ एवं दार्शनिक पायिथागोरस के नाम से विश्वविख्यात हुआ ! उन्होंने रेखागणित में पायिथागोरस प्रमेय लिखकर त्रिकोणमिति सरीखी एक नई शाखा को जन्म दिया ! जिस व्यक्ति ने बच्चे के बुद्धि– चातुर्य को परखा था , वे यूनान के महानतम तत्वज्ञानी सन्त डेमोक्रीट्स थे !
———- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !