एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान् श्रीकृष्ण की लीला भूमि के दर्शन के लिए व वृंदावन पहुंचे ! वह श्री राम गुलेला नामक स्थान पर रुके ! भक्तमाल के रचयिता संत नाभा जी उन दिनों वृंदावन आये हुए थे ! उन्होंने संतों को प्रसाद भोजन गृहण करने के लिए आमंत्रित किया ! उन्हें यह पता नहीं था कि तुलसीदास भी वृंदावन आये हुए हैं ! तुलसीदास ने नाभा जी की ख्याति सुन रखी थी ! उन्हें जैसे भगवान् से प्रेरणा मिली कि नाभादास जी द्वारा आयोजित भंडारे में जाकर वैष्णव संतों के दर्शन करें !
वह चुपचाप वहाँ जा पहुंचे ! उन्होंने देखा कि प्रसाद के लिए संत पंक्ति में बैठ चुके हैं ! कहीं जगह नहीं बची है ! तुलसीदास उस स्थान पर बैठ गये ! जहाँ संतों की जूतियाँ रखी हुई थी ! किसी ने उनके सामने भी पत्तल रख दिया ! प्रसाद परोसने वाले ने सब्जियाँ और पूरियाँ पत्तल में परोस दी ! बाल्टी में खीर लेकर आये संत— सेवक ने पूंछा , बाबा, खीर किस पात्र में परोसू ? तुलसीदास जी ने एक संत की जूती की ओर संकेत कर कह दिया, इसमें परोस दो ! यह सुनते ही खीर परोसने वाला नाराज़ होकर शोर मचाने लगा ! शोर सुनकर संत नाभादास वहाँ पहुंचे ! तुलसीदास को देखते ही वह उनके चरणों में गिर गए !
———— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !