भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परक्षाई से हारा,
अंतरतम का नेह निचोडे,
बुझी हुई बाती सुलगायें,
आओ फिर से दिया जलाये !
हम पड़ाव को समझें मंज़िल ,
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल ,
वर्तमान के मोहजाल में,
आने वाला कल न भुलायें
आओ फिर से दिया जलाये !
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा ,
अपनों के विघ्नों ने घेरा ,
अंतिम जय का वज्र बनाने ,
नव दधीचि हड्डियाँ गलायें
आओ फिर से दिया जलाएं !!
——– अटल बिहारी बाजपेयी
(संकलित )
राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !
———-