आयुर्वेद के ज्ञाता महर्षि चरक उन दिनों गुरुकुल में पढ़ते थे ! वन में जाकर औषधियों की खोजबीन करने का कार्य उनके पास था ! एक दिन उनको एक फोड़ा निकल आया ! गुरु ने फोड़ा ठीक करने के लिए एक विशेष औषधि बताई और साथ में यह भी कहा कि यदि औषधि नहीं मिली तो रोग और भी भयंकर हो सकता है ! चरक उस औषधि को खोजने के लिए निकल पड़े! वे वन में दूर–दूर तक गये ! उन्होंने सैकड़ों औषधियों को देखा और उनके प्रभाव का निरीक्षण भी किया ! इस प्रकार उन्हें इस कार्य में लंबा समय लग गया लेकिन उन्हें जिस औषधि की आवश्यकता थी, वह नहीं मिली !
वे फोड़े की पीड़ा से बहुत दुःखी थे ! जब वे निराश होकर वापस लौटे तो गुरु जी ने कहा कि औषधि तो आश्रम के पीछे ही है ! उसे उखाड़ लाओ, सेवन करो ! चरक ने ऐसा ही किया ! औषधि के सेवन से वह कुछ ही दिनों में रोगमुक्त हो गये ! एक दिन चरक ने गुरु जी से पूँछा, जब वह औषधि आश्रम के पीछे मौजूद थी तो आपने मुझे उस लम्बी खोजबीन में क्यों लगाया ? गुरु ने कहा शोध की लगन जगाना अधिक महत्वपूर्ण है ! उसके कारण असंख्य लोगों का भला होता है ! उस प्रयास में तुम्हारी एकाग्रता हो सके और वैसे ही स्वमत बन सको , इसी कारण से तुम्हें उस कठोर प्रयत्न में लगाया था ! चरक ऐसा सुनकर अपने गुरु के प्रति नतमस्तक हो गये !
———- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे !