” ओ देवी वीनस, मुझ पर रोशनी कर “

ओ  देवी  वीनस  मुझ  पर  रोशनी  कर

ओ गुलाबों  के  मुकुट  वाली  समुद्रों  की  देवी

टापुओं  के  मध्य  देदीप्यमान

ओ  गुलाबों के मुकुट वाली, समुद्रों की तरह सम्मोहित करने वाली

और  लाने  वाली  तीन  गौरव

तत्पर  साथी  और  प्रफुल्लित  मन

मधुरता  और  नटखटपन

लापरवाह  शिकारन, सुन्दर  , मोहान्ध

एक  शाही  दिल  वाली  स्त्री

घाव देने वाली और स्वतंत्र को बांधने वाली

उसे  मेरे  लिए  भी  बांध

इसलिए  नहीं कि मीठी चमकती लाल रक्त बहे

नर्म  और  नन्हें  दिल  वाली

उसे  ढूँढना  तुम्हारे  लिए  खेल  है

देवी, चाहे  वह  मेरा  अंत  कर  दे  !

—— श्री अरविंद घोष, महान योगी एवं दार्शनिक

(  संकलित  )

राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !