” खग ! उड़ते रहना जीवन भर “

भूल गया है तू अपना पथ ,

और नहीं पंखों में भी गति ,

किन्तु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर

खग ! उड़ते रहना जीवन भर !

मत डर प्रलय झकोरों से तू

बढ़ आशा हलकोरों से तू ,

क्षण में यह अरि– दल मिट जायेगा तेरे पँखों से पिस कर !

खग उड़ते रहना जीवन भर !

यदि तू लौट पड़ेगा थक कर

अंधड़ काल बवंडर से डर ,

प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझ को हँस हँस कर !

खग ! उड़ते रहना जीवन भर !

और मिट गया चलते चलते ,

मंज़िल पथ तय करते करते ,

तेरी खाक़ चढ़ायेगा जग उन्नत भाल और आँखों पर !

खग ! उड़ते रहना जीवन भर !

—- प्रसिद्ध कवि गोपालदास नीरज

( संकलित )

—- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !

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