” विनय “

पथ  पर  मेरा  जीवन  भर  दो,

बादल  हे, अनंत  अंबर  के  !

बरस  सलिल  ,  गति  उर्मिल  कर  दो  !

तट  हों  विटप  छाँह  के,  निर्जन  ,

सस्मित्—-  कलिदल  — चुंबित– जलकण,

शीतल  शीतल  बहे  समीरण  ,

कूंजे  दुरम— विहंगगण, वर  दो  !

दूर  ग्राम  की  कोई  वामा

आये  मंद  चरण  अभिरामा,

उतरे  जल   में  अवसंन्  श्यामा  ,

अंकित  उर  छवि  सुंदरतर  हो   !

——-  प्रसिद्ध कवि  सूर्यकांत  त्रिपाठी  ”  निराला ‘

(  संकलित  )

राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !