” प्राण सखा हे मेरे बंधु “

आज झड़ी की रात हुआ आगमन तुम्हारा है

प्राण  सखा  हे  मेरे  बंधु  !

रोता  है  आकाश  हताश — सा

नहीं  नींद  है  नयनों  में  मेरे

द्वार  खोलकर  कर के, हे  प्रियवर  !

बार — बार  मैं  तुम्हें  निहार  रहा  हूँ

प्राण  सखा  हे  मेरे  बंधु  !

 

बाहर  कुछ  मैं  देख  न  पाता

सोचा करता हूँ कि किधर पथ बंधु  ! तुम्हारा है

किस  सुदूर  सरिता  के  पार

किस  दुर्गम  जंगल  के  पास

किस  गंभीर  तमिस्रा  होकर

हो  जाते  हो  पार, भला, तुम  ?

प्राण  सखा  हे  मेरे  बंधु  !!

——— प्रसिद्ध कवि रवींद्रनाथ  ठाकुर

(  संकलित  )

राम कुमार  दीक्षित  ,   पत्रकार  !