” स्वप्न भी छल, जागरण भी “

स्वप्न  भी  छल  , जागरण  भी

 

भूत  केवल  जल्पना है,

औ’  भविष्यत्  कल्पना  है,

वर्तमान  लकीर  भ्रम  की  !

और  है  चौथी  शरण  भी  !

स्वप्न  भी  छल,  जागरण  भी  !

 

मनुज  के  अधिकार  कैसे  ,

हम  यहाँ  लाचार  ऐसे  ,

कर  नहीं  इनकार सकते, कर नहीं सकते  वरण भी  !

स्वप्न  भी  छल,  जागरण  भी  !

 

जानता  यह  भी  नहीं  मन —

कौन  मेरी  थाम  गरदन,

है विवश करता कि कह दूँ, व्यर्थ जीवन भी मरण भी  !

स्वप्न  भी  छल  , जागरण  भी  !!

——— प्रसिद्ध कवि  हरिवंशराय  बच्चन

( संकलित  )

राम कुमार  दीक्षित  ,   पत्रकार  !