” सुख — दुख “

सुख– दुख के मधुर मिलन से

यह जीवन हो परिपूरन  ,

फिर  घन  में  ओझल  हो  शशि  ,

फिर  शशि  से  ओझल  हो  घन  !

 

मैं  नहीं  चाहता  चिर–सुख

मैं  नहीं  चाहता  चिर–  दुख,

सुख  दुख  की  खेल  मिचौनी

खोले  जीवन  अपना  मुख  !

 

जग  पीड़ित  है  अति  दुख  से

जग  पीड़ित  है  अति–  सुख  से  ,

मानव–  जग  में  बन्ट   जाएं

दुख  सुख  से  औ  सुख  दुख  से  !

 

अविरत  दुख  है  उत्पीड़न,

अविरत  सुख  भी  उत्पीड़न  ,

दुख–  सुख  की  निशा–  दिवा  में  ,

सोता–  जगता  जग–  जीवन  !

 

यह  साँझ–  उषा  का  आँगन,

आलिंगन  विरह–  मिलन  का  ,

चिर  हास–  अश्रुमय  आनन

रे  इस  मानव  —  जीवन  का  !

———-  प्रसिद्ध  कवि  सुमित्रानंदन  पंत

(  संकलित  )

राम कुमार  दीक्षित,  पत्रकार  !