” ओ गगन के जगमगाते दीप “

ओ गगन के जगमगाते दीप

दीन  जीवन के दुलारे,

खो  गये  जो  स्वप्न  सारे ,

ला  सकोगे  क्या  उन्हें  फिर  खोज  हृदय  समीप  ?

ओ  गगन  के  जगमगाते  दीप  !

 

यदि  न  मेरे  स्वप्न  पाते,

क्यों  नहीं  तुम  खोज  लाते

वह  घडी  चिर  शान्ति  दे  जो  पहुँच  प्राण  समीप  ?

 

यदि  न  वह  भी  मिल  रही  है  ,

है  कठिन  पाना  सही  है  ,

नींद  को ही  क्यों  न  लाते  खींच  पलक  समीप  ?

ओ  गगन  के  जगमगाते  दीप  !

——- प्रसिद्ध कवि  हरिवंश राय  बच्चन

( संकलित  )

राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !