किसमें होकर आऊँ मैं ?
सब द्वारों पर भीड़ मची है ,
कैसे भीतर जाऊँ मैं ?
द्वारपाल भय दिखलाते हैं ,
कुछ ही जन जाने पाते हैं ,
शेष सभी धक्के खाते हैं ,
क्यों कर घुसने पाऊँ मैं ?
तेरे घर के द्वार बहुत हैं ,
किसमें होकर आऊँ मैं ?
तेरी विभव कल्पना करके ,
उसके वर्णन से मन भर के ,
भूल रहे हैं जन बाहर के ,
कैसे तुझे भुलाऊं मैं ?
तेरे घर के द्वार बहुत हैं ,
किसमें होकर आऊँ मैं ?
बीत चुकी है बेला सारी ,
किन्तु न आई मेरी बारी ,
करूँ कुटी की अब तैयारी ,
वहीं बैठ गुण गाऊँ मैं !
तेरे घर के द्वार बहुत हैं ,
किसमें होकर आऊँ मैं ?
कुटी खोल भीतर जाता हूँ,
तो वैसा ही रह जाता हूँ
तुझको यह कहते पाता हूँ ,
“अतिथि ” कहो क्या लाऊँ मैं ?
तेरे घर के द्वार बहुत हैं ,
किसमें होकर आऊँ मैं ?
—————– प्रसिद्ध कवि मैथिली शरण गुप्त
( संकलित )
राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !