” है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए “

है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए  ,

जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए  !

 

रोज़ जो चेहरे बदलते हैं लिबासों की तरह  ,

अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए  !

 

अब भी कुछ लोगों ने बेची है न अपनी आत्मा  ,

ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए  !

 

फूल बनकर जो जिया वो यहाँ मसला गया  ,

ज़ीस्त को फौलाद के सांचे में ढलना चाहिये  !

 

छीनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो

आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए  !

 

दिल जवां, सपने जवां, मौसम जवां, शब् भी जवां  ,

तुझको मुझसे इस समय सूने में मिलना चाहिए  !

——  प्रसिद्ध कवि  गोपालदास  ” नीरज  ”

( संकलित  )

राम कुमार दीक्षित  ,  पत्रकार  !