संतों की एक सभा चल रही थी ! किसी ने एक एक घड़े में गंगा जल भरकर वहाँ रखवा दिया ताकि संत जन प्यास लगे तो गंगा जल पी सकें ! संतों की उस सभा के बाहर एक व्यक्ति खड़ा था ! उसने गंगा जल से भरे घड़े को देखा तो उसे तरह तरह के विचार आने लगे, वह सोचने लगा, अहा ! यह घडा कितना भाग्यशाली है !
एक तो इसमें किसी तालाब पोखर का नहीं बल्कि गंगा जल भरा गया है और दूसरे अब यह संतों के काम आयेगा ! सन्तों का स्पर्श मिलेगा ! उनकी सेवा का अवसर मिलेगा ! ऐसी किस्मत किसी किसी की ही होती है !
घड़े ने उसके मनोभाव पढ़ लिए और घड़ा बोल पड़ा : बंधु मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा सिर्फ मिट्टी का ढेर था ! किसी भी काम का नहीं था ! कभी ऐसा नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है ! फिर एक दिन एक कुम्हार आया, उसने फावडा मार–मारकर हमको खोदा और मुझे बोरी में भरकर गधे पर लादकर अपने घर ले गया ! वहाँ ले जाकर उसने मुझको रौंदा, फिर पानी डालकर गूंथा ! चाक पर चढ़ाकर तेज़ी से घुमाया, फिर गला काटा , फिर थपकी मार– मारकर बराबर किया ! बात यहीं नहीं रुकी ! उसके बाद आँवे के आग झोंक दिया जलने को !
इतने कष्ट सहकर बाहर निकला तो गधे पर लादकर उसने मुझे बाज़ार में बेचने के लिए लाया गया ! वहाँ लोग मुझे ठोंक- ठोंक कर देख रहे थे कि ठीक है कि नहीं ! ठोंकने पीटने के बाद भी मेरी कीमत लगाई गई भी तो क्या बस 20 से, 30 रुपये ! लेकिन ईश्वर की योजना कुछ और थी ! किसी सज्जन ने मुझे खरीद लिया और जब मुझमें गंगा जल भरकर संतों की सभा में भेज दिया ! तब मुझे आभास हुआ कि कुम्हार का वह फावडा चलाना भी उसकी कृपा थी ! उसका मुझे विषम परिस्थितियों से गुजारना भी उसकी कृपा ही थी !
कई बार हमारे साथ भी ऐसा ही होता है, तब हम स्वयं को कोसने के साथ साथ परमात्मा पर उंगली उठाकर कहते हैं कि उसने मेरे साथ ही ऐसा क्यों किया ? क्या मैं इतना बुरा हूँ ? और मालिक ने सारे दुःख तकलीफे मुझे ही क्यों दिये ! लेकिन सच तो यह है कि परमात्मा तमाम पत्थरों की भीड़ में से तराशने के लिए आप को चुनता है और फिर तराशने में तकलीफ तो झेलनी ही पड़ती है ! कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि परमात्मा जो भी करता है , हमारे भले के लिए करता है ! इसलिए परमात्मा के प्रति हमें हमेशा कृतज्ञवान बने रहना चाहिए और परमात्मा के प्रति सदैव समर्पित भाव बनाये रखना चाहिए !
राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !