सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वह गाँव,
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव !
ऊपर वाला पांसा फेंके, नीचे चलते दाँव ,
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव !
भले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते,
कड़वे मीठे फल करम के, यहाँ सभी पाते !
कभी सीधे कभी उल्टे पड़ते, अज़ब समय के पाँव ,
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव !
क्या खुशियाँ, क्या गम, यह सब मिलते बारी बारी,
मालिक की मर्जी पे चलती, यह दुनिया सारी !
ध्यान से खेना जग नदिया में, बंदे अपनी नाव,
कभी धूप कभी छाँव , कभी धूप तो कभी छाँव !
सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वह गाँव ,
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव !
————– कवि प्रदीप
( संकलित )
राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !