” मैं बंदूकें बो रहा हूँ ” —- शहीद भगत सिंह के बचपन से जुड़ा प्रेरक प्रसंग !

कहा जाता है कि ‘ पूत के पाँव पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं  ! पाँच वर्ष की बाल अवस्था में ही भगत सिंह के खेल भी अनोखे थे  ! वह अपने साथियों को दो टोलियों में बाँट दिया करते थे और फिर वे परस्पर एक– दूसरे पर आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास किया करते थे  ! भगत सिंह के हर कार्य में उनके वीर, धीर और निर्भीक होने का आभास मिलता था  !

 

एक बार सरदार किशन सिंह इस बालक को लेकर अपने मित्र श्री नन्द किशोर मेहता के पास उनके खेत पर गए  ! दोनों मित्र बातों में लग गए और बालक भगत अपने खेल में लग गया  !  श्री नन्द किशोर मेहता का ध्यान भगत सिंह के खेल की ओर आकृष्ट हुआ  ! भगत सिंह मिट्टी के ढेरों पर छोटे–छोटे तिनके लगाए जा रहा था  ! उनके इस को देखकर श्री नन्द किशोर मेहता बड़े स्नेह भाव से बालक भगत सिंह से बातें करने लगे  —” तुम्हारा क्या नाम है  ? श्री नन्द किशोर मेहता ने पूँछा  ! बालक ने उत्तर दिया— ” भगत सिंह  ”  ! फिर श्री मेहता जी ने पूँछा  —  ” तुम क्या कर रहे हो ” ?   बालक भगत सिंह ने बड़े गर्व से उत्तर दिया  !  ” मैं बंदूकें बो रहा हूँ ” ! ” बंदूकें ” ? ” हाँ बंदूकें  ! ” वह क्यों  ” ? ” अपने देश को स्वतंत्र कराने के लिए  ” !  ” तुम्हारा धर्म क्या है  “?  ” देशभक्ति  ! देश की सेवा करना  !

 

श्री नन्द किशोर मेहता रास्ट्रीय विचारों से ओत्– प्रोत रास्ट्र भक्त थे  ! उन्होंने बालक भगत सिंह को बड़े स्नेह पूर्वक अपनी गोदी में उठा लिया  ! श्री मेहता जी बालक की बातों से अत्यधिक प्रभावित हुए और सरदार किशन सिंह से बोले, ” भाई “! तुम बड़े भाग्यशाली हो, जो तुम्हारे घर में ऐसे होनहार व विलक्षण बालक ने जन्म लिया है  ! मेरा इसे हार्दिक आशीर्वाद है  ! यह बालक संसार में तुम्हारा नाम रोशन करेगा और देश भक्तों में इसका नाम अमर होगा  “! वास्तव में समय आने पर श्री मेहता की यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई  !

राम कुमार दीक्षित, पत्रकार  !