बहुत समय पहले की बात है ! एक गाँव में एक मूर्तिकार ( मूर्ति बनाने वाला रहता था ! वह ऐसी मूर्तियाँ बनाता था कि जिन्हें देखकर हर किसी को मूर्तियों के जीवित होने का भ्रम हो जाता था ! आस पास के सभी गाँव में उसकी प्रसिद्धि थी ! लोग उसकी मूर्तिकला के कायल थे ! इसलिए उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था ! जीवन के सफर में एक वक़्त ऐसा भी आया, जब उसे लगने लगा कि अब उसकी मृत्यु होने वाली है ! वह ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पायेगा ! उसे लगा कि जल्दी ही उसकी मृत्यु होने वाली है तो वह परेशानी में पड़ गया ! यमदूतों को भ्रमित करने के लिए उसने एक योजना बनाई ! उसने हूबहू अपने जैसी दस मूर्तियाँ बनायीं और ख़ुद उन मूर्तियों के बीच जाकर बैठे गया !
यमदूत जब उसे लेने आये तो एक जैसी ग्यारह आकृतियों को देखकर दंग रह गये ! वे पहचान नहीं कर पा रहे थे कि उन मूर्तियों में से असली मनुष्य कौन है ! वे सोचने लगे कि अब क्या किया जाये ! अगर मूर्तिकार के प्राण नहीं ले सके तो सृष्टि का नियम टूट जायेगा और सत्य परखने के लिए मूर्तियों को तोडा गया तो कला का अपमान हो जायेगा ! अचानक एक यमदूत को मानव स्वभाव के सबसे बड़े दुर्गुण अहंकार को परखने का विचार आया ! उसने मूर्तियों को देखते हुए कहा, कितनी सुन्दर मूर्तियाँ बनी हैं, लेकिन मूर्तियों में एक त्रुटि है ! काश मूर्ति बनाने वाला मेरे सामने होता तो मैं उसे बताता कि मूर्ति बनाने में क्या गलती हुई है !
यह सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा ! उसने सोचा, मैंने अपना पूरा जीवन मूर्तियाँ बनाने में समर्पित कर दिया है ! भला, मेरी मूर्तियों में क्या गलती हो सकती है ? वह बोल उठा, ” कैसी त्रुटि ” ? झट से यमदूत ने उसे पकड़ लिया और कहा, बस यही गलती कर गये कि तुम अपने अहंकार में कि बेज़ान मूर्तियाँ बोला नहीं करती ” ! इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अहंकार नहीं करना चाहिए क्यों कि अहंकार ने हमेशा इनसान को परेशानी और दुःख के सिवा कुछ नहीं दिया !
राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे !