हे री मैं तो प्रेम दीवानी, मेरा दरद न जाने कोय !
सूली ऊपर सेज हमारी, किस विध सोना होय !
गगन मंडल पर सेज पिया की , किस विध मिलना होय !
घायल की गति घायल जानै, कि जिन लागी होय !
जौहरी की गति जौहरी जानै, कि जिन लागी होय !
दरद की मारी बन बन डोलूँ, वैद मिल्यो नहीं कोय !
मीरा की प्रभु पीर मिटै जब वैद सांवला होय !
मीरा ने परमात्मा को प्रेम से पाया ! मीरा कहती हैं कि एै सखी, मैं तो अपने प्रियतम के इश्क में दीवानी हो गयी हूँ ! मेरा दर्द कोई नहीं जानता ! हमारी सेज सूली पर है तो मुझे भला नींद कैसे आ सकती है और मेरे महबूब की सेज आसमान पर है ! आख़िर मुलाकात कैसे हो ? घायल की हालत तो घायल ही जान सकता है , जिसने कभी जख्म खाया हो ! जौहरी के जौहर को जौहरी ही पहचान सकता है बशर्ते कि वह जौहरी हो ! मुझे देखो मैं दर्द से बेचैन होकर जंगल — जंगल मारी फिर रही हूँ और कोई वैद्य मिलता नहीं मेरे मालिक ! मीरा का दर्द तो उस वक़्त मिटेगा, जब सलोने साँवले श्री कृष्ण इसका इलाज करेंगे !
परमात्मा को मीरा ने प्रेम मार्ग यानी भक्ति मार्ग से ही प्राप्त किया ! जब हम सभी दुनिया के लोगों से प्रेम कर सकते हैं तो परमात्मा से क्यों नहीं ? हाँ, यह जरूर है कि भक्ति मार्ग में आगे बढ़ने के लिए अहंकार से शून्य होना पड़ता है, तभी आगे का मार्ग प्रशस्त हो पायेगा ! गुरु या सतगुरु द्वारा दी गयी ऊर्जा के सहारे परमात्मा के प्रेम में डूबा जा सकता है ! यहाँ यह भी आवश्यक है कि परमात्मा को पाने की प्यास होना बहुत ही जरूरी है ! अब मीरा को अपने प्रियतम कृष्ण के अलावा कुछ दिखता ही नहीं ! संसार में रहते हुए भी परमात्मा का निरंतर स्मरण आपका मार्ग ख़ुद प्रशस्त करेगा ! भक्ति मार्ग के संतो ने कहा भी है कि परमात्मा से प्रेम करने में किसी योग्यता की आश्यकता नहीं है ! बस आप उसके प्रति प्रेम से भर जाओ तो अहंकार अपने आप तिरोहित हो जायेगा ! परमात्मा करे, आपको परमात्मा से प्रेम हो जाए और आप उसको आप अपने हृदय में अनुभव कर सकें !
राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !