” ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है “

एक  प्यार  का  नग़मा  है  ,

मौजों  की  रवानी  है  !

ज़िंदगी  और  कुछ  भी  नहीं  ,

तेरी  मेरी  कहानी  है  !

 

कुछ  पाकर  खोना  है  ,

कुछ  खोकर  पाना  है   ,

जीवन  का  मतलब  तो,

आना  और  जाना  है   !

दो  पल  के  जीवन  से  ,

इक  उम्र  चुरानी  है  !

ज़िंदगी  और  कुछ  भी  नहीं  ,

तेरी  मेरी  कहानी  है  !

 

तू  धार  है  नदिया  की  ,

मैं  तेरा  किनारा  हूँ  ,

तू  मेरा  सहारा  है  ,

मैं  तेरा  सहारा  हूँ  ,

आँखों  में  समंदर  है  ,

आशाओं  का  पानी  है  !

ज़िंदगी  और कुछ  भी  नहीं  ,

तेरी  मेरी  कहानी  है  !

 

तूफान  को  आना  है  ,

आ  कर  चले  जाना  है  ,

बादल  है  ये  कुछ  पल  का  ,

छा  कर  ढल   जाना  है  ,

परछाईंया रह  जाती

रह  जाती  निशानी  है  !

ज़िंदगी  और  कुछ  भी  नहीं  ,

तेरी  मेरी  कहानी  है  !

 

जो  बीत  गया है  वो  ,

अब  दौर  न  आयेगा  ,

इस  दिल  में  सिवा  तेरे   ,

कोई  और  न  आयेगा  ,

घर  फूक  दिया  दिया  मैंने  ,

अब  राख  उठानी  है  !

ज़िंदगी  और  कुछ  भी  नहीं  ,

तेरी  मेरी  कहानी  है  !

———– गीतकार  संतोष आनंद

यह गीत  बहुत ही अच्छा संदेश देता है  ! यह ज़िंदगी और कुछ नहीं है  ! एक कहानी है  ! यह आपकी और हमारी कहानी है  ! जिस तरह से कहानी के अंदर पात्र चलते हैं  ! उसी तरह से ज़िंदगी के अंदर आप और हम उस कहानी के पात्र हैं  ! हम लोग भी कहानी  में इसी तरह से चल रहे हैं  ! कहानी का अंत किस तरह से होगा, इसको कोई तय नहीं कर सकता  !   ज़िंदगी के अन्दर हम कुछ चीजों को पा लेते हैं तो कुछ चीजों को खो देते हैं  ! यह भी ज़िंदगी का एक रहस्य है कि ज़िंदगी में कुछ पाने के लिए कुछ चीजों को खोना पड़ता है  ! यह भी संदेश है कि लक्ष्य को पाने के लिए सुख चैन खोना पड़ता है  !

ज़िंदगी सिर्फ दो पल की ही होती है  ! पता नहीं  चलता है कि समय कब बीत जाता है और कई बार  तो दो पल ही नहीं मिल पाते हैं  !  ज़िंदगी से कब किनारा करना पड़े कोई नहीं जानता  ! इसी समय में ज़िंदगी को जीना होता है ! कठिनाइयाँ भी आती हैं और उनका समाधान भी निकालना होता है और यह सब आशाओं के सहारे ही करना होता  है  ! उसके बाद लोगों की आँखों में हमारी बस एक परछाईं रह जाती है और कुछ  यादें रह जाती हैं जो कभी कभी लोगों को हमारा एहसास दिलाती रहती है  ! बस ज़िंदगी यही है  , मेरी और  आपकी  !

——— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार   !