” आदमी को चाहिए वक़्त से डर कर रहे “

समाज में आदमी ही एक ऐसा प्राणी है जिसका यदि  समय अच्छा चल रहा हो तो वह अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता  !   धार्मिक ग्रंथों में भी लिखा हुआ है कि समय के साथ खिलवाड करना ठीक नहीं होता  ! समय यदि अच्छा है तो बड़ी सावधानी की जरूरत है कि भूलवश कहीं कुछ गलत ना हो जाए  !  ऐसे लोग समाज में बहुतायत में हैं कि समय अच्छा होने पर  यदि धन बढ़ गया, यश बढ़ गया, पद बढ़ गया और जन बल बढ़ गया तो फिर  उनके निर्बलों पर अत्याचार बढ़ जाते हैं  ! कुछ लोग तो लोगों को गालियाँ देना, लडाई करने के लिए ताल ठोंकना  और पीठ पीछे खूब बुराई करने में लग जाते हैं  ! लोगों को एक दूसरे से लडाई कराने में भी खूब मज़ा आता है  ! ऐसे लोग किसी भी तरह से दूसरे को पीड़ा पहुंचाने में पूरी ताकत से जुटे रहते हैं  ! वह यह भूल जाते हैं कि समय अच्छा हो या बुरा एक जगह पर रुका नहीं रहता है  ! समय का पहिया घूमता रहता है , चाहे उसकी गति धीमी भले हो  लेकिन समय पूरा हिसाब  चुकता कर लेता है  !

एक दोहे में कितनी सार्थक और गंभीर बात कही गई है  ! ” माटी कहे कुम्हार से  तू क्या रौंदे मोहिं, एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौदूँगी तोहि ” !   मिट्टी कुम्हार से बोल रही है, आज तुम जितना चाहे, उतना मसल दो लेकिन मत भूलो कि एक दिन समय का पहिया घूमेगा और तुम मेरे नीचे आ जाओगे  !  लेकिन जिस पर अहंकार का नशा छाया हो  , जो मदमस्त हाथी की तरह गर्व से चूर हो गया हो, वह भला संतों के वचन कहाँ मान सकता है  !  जिसको दूसरे को दुःखी देखकर बहुत मज़ा आता हो  ! वह भला किसी की पीड़ा को कैसे समझ सकता है  ! प्रकृति का नियम है कि जो दोगे, ब्याज सहित वापस लौटेगा  ! ये बात अलग है कि ब्याज सहित वापस मिलने में थोड़ा वक्त लगे  !  एक शायर ने लिखा है ” वक़्त की पाबंद हैं, आती जाती रौनकें  ! वक़्त है फूलों की सेज़, वक़्त है  काँटों का  ताज  ! वक़्त से दिन और रात  ! इसलिए परम — हंसों के वचन है कि यदि आप किसी का भला करने की सामर्थ्य रखते हैं तो अवश्य भला कीजिये और यदि किसी का भला नहीं कर सकते तो  किसी का भी बुरा न कीजिये  और यदि आप किसी भी प्रकार से किसी को कष्ट पहुंचाते हैं तो परिणाम  आपको वापस मिलकर ही रहेगा  !

 

राम कुमार दीक्षित, पत्रकार  ,  पुणे   !