” साधु की झोपड़ी “

किसी गाँव में दो साधु रहते थे  ! वे दिन भर भिक्षा मांगते और मन्दिर में पूजा करते थे  ! एक दिन गाँव में आंधी आ गई  और बहुत जोरों की बारिश होने लगी  ! दोनों साधु गाँव की सीमा से लगी एक झोपड़ी में निवास करते थे  ! शाम को जब दोनों वापस पहुंचे तो देखा कि आंधी– तूफान के कारण उनकी आधी झोपड़ी टूट गई है  ! यह देखकर पहला साधु क्रोधित हो उठता है और बुदबुदाने लगता है ”  भगवान तू मेरे साथ हमेशा गलत ही करता है— मैं दिन भर तेरा नाम लेता हूँ  ! मन्दिर में तेरी पूजा करता हूँ, फिर भी तूने मेरी झोपड़ी तोड़ दी  ! गाँव में चोर, लुटेरे एवं झूठे लोगों के तो मकानों को कुछ नहीं हुआ  ! बिचारे हम साधुओं की झोपड़ी ही तूने तोड़ दी  ! यही तेरा काम है  ! हम तेरा नाम जपते हैं  लेकिन तू हमसे प्रेम नहीं करता है  !

 

तभी दूसरा साधु आता है और झोपड़ी को देखकर खुश हो जाता है और नाचने लगता है और कहता है— ” भगवान आज विश्वास हो गया है कि तू हमसे कितना प्रेम करता है  ! ये हमारी आधी झोपड़ी तूने ही बचाई होगी, वर्ना इतनी तेज़ आंधी–तूफान में तो पूरी झोपड़ी ही उड़ जाती  ! ये तेरी ही कृपा है कि अभी भी हमारे पास सर ढकने की जगह है  ! निश्चित ही ये मेरी पूजा का फल है  ! कल से मैं तेरी और पूजा करूँगा  ! मेरा तुझ पर अब और विश्वास बढ़ गया है  ! परमात्मा तेरी जय हो  ! इस  कहानी में यदि आप देखें तो एक जैसे दो लोगों ने कितने अलग अलग ढंग से इस घटना को देखा  ! हमारी सोच हमारा भविष्य तय करती है  ! हमारी दुनिया तभी बदलेगी, जब हमारी सोच बदलेगी  ! यदि हमारी सोच पहले वाले साधु की तरह होगी तो हमें हर चीज में कमी ही नज़र आयेगी और यदि दूसरे साधु की तरह होगी तो हमें हर चीज में अच्छाई ही दिखेगी  ! इसलिए हम लोगों को हमेशा सकरात्मक सोच ही बनाये रखना चाहिए  !

राम कुमार दीक्षित, पत्रकार   !