गत जीवन के सुख– दुःख झेले,
दर्शनकारी स्मृतियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ !
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ !
नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ !
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ !
आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है ,
लाज नहीं मुझको देवों में, यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ !
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ !
————- हरिवंशराय बच्चन
( संकलित )
राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !