“अंतर मम विकसित करो “

अंतर मम विकसित करो

हे अंतर्यामी !

निर्मल करो, उज्ज्वल करो ,

सुंदर करो हे !

जाग्रत करो , उद्यत करो ,

निर्भय करो हे !

मंगल करो, निरलस निः संशय करो हे !

अंतर मम विकसित करो ,

हे अंतर्यामी !

सबके संग युक्त करो ,

बंधन से मुक्त करो ,

सकल कर्म में संचारित कर ,

निज छंद में शमित करो !

मेरा अंतर चरण कमल में निस्पंदित् करो हे !

नंदित करो , नंदित करो ,

नंदित करो हे !

अंतर मम विकसित करो

हे अंतर्यामी !

—– प्रसिद्ध कवि रवींद्रनाथ टैगोर

( संकलित )

—– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !

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