” हार न अपनी मानूँगा मैं “

हार न अपनी मानूँगा मैं

चाहे पथ में शूल बिछा दो

चाहे ज्वालामुखी बसाओ ,

किन्तु मुझे जब जाना ही है

तलवारों की धारों पर भी, हँस कर पैर बढ़ा लूँगा मैं !

मन में मरु सी प्यास जगाओ

रस की बूँद नहीं बरसाओ ,

किन्तु मुझे जब जीना ही है

मसल– मसल कर उर के छाले, अपनी प्यास बुझा लूँगा मैं !

चाहे चिर गायन सो जाए ,

और हृदय मुरदा हो जाए ,

किन्तु मुझे अब जीना ही है

बैठे चिता की छाती पर भी मादक गीत सुना लूँगा मैं !

हार न अपनी मानूँगा मैं !

— प्रसिद्ध कवि गोपालदास नीरज

( संकलित )

—- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !

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