नभ के सीमाहीन पटल पर
एक चमकती रेखा चलकर
लुप्त शून्य में होती– बुझता एक निशा का दीप दुलारा !
देखो, टूट रहा है तारा !!
हुआ न उडुगन में क्रंदन भी ,
गिरे न आँसू के दो कण् भी
किसके उर में आह उठेगी होगा जब लघु अंत हमारा !
देखो, टूट रहा है तारा !!
यह परवशता या निरममता
निर्बलता या बल की क्षमता
मिटता एक, देखता रहता दूर खडा तारक दल सारा !
देखो, टूट रहा है तारा !!
—- प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन
( संकलित )
—- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !