” ज़िंदगी “

1. कुछ इस तरह से गुजारी है ज़िंदगी जैसे,

तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा !

2. जहाँ – जहाँ कोई ठोकर है मेरी किस्मत में ,

वहीं– वहीं लिए फिरती है मेरी ज़िंदगी मुझको !

3. देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना करीब से ,

चेहरे तमाम लगने लगे हैं अब तो अजीब से !

4 . हज़ारों उलझने राहों में और कोशिशें बेहिसाब,

इसी का नाम है ज़िंदगी चलते रहिये जनाब !

5. कुछ इस तरह फ़क़ीर ने ज़िंदगी की मिसाल दी,

मुट्ठी में धूल ली और हवा में उछाल दी !

( संकलित )

—- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !

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