निशा निखरी , था निर्मल हास !
बह रही छाया पथ में स्वच्छ
सुधा सरिता लेती उच्छवास !
पुलक कर लगी देखने धरा ,
प्रकृति भी सकी न आँखें मूँद !
सु शीतलकारी शशि आया ,
सुधा की मनो बड़ी सी बूँद !!
—- प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद
( संकलित )
—- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !