व्यर्थ उसे दर्शन समझाना
उसके दुख से दुखी नहीं हो, तो बस दूर रहो !
उसके नयनों का जल खारा
है गंगा की निर्मल धारा
पावन कर देगी तन– मन को क्षण भर साथ बहो !
देन बड़ी सबसे यह विधि की
है समता इससे किस निधि की
दुखी दुखी को कहो , भूलकर उसे न दीन कहो !
दुखी मन से कुछ भी न कहो !
——– प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !